आदि शंकराचार्य जयंती पर जगद्गुरु को शत् शत् नमन।

आदि शंकराचार्य जयंती पर जगद्गुरु को शत् शत् नमन। आदि शंकराचार्य जयंतीवैषाख शुक्लपक्ष पंचमी। सनातन धर्म के धर्मचक्रप्रवर्तक, ज्ञानस्वरूप और "अद्वैत वेदांत" के पुनर्प्रतिष्ठापक को शत् शत् नमन। आज भगवान आदि शंकराचार्य की जयंती है। आदि शंकराचार्य का जन्म केरल के मालाबार क्षेत्र के कालड़ी नामक स्थान पर नम्बूदरी भट ब्राह्मण परिवार हुआ था। इनके जन्म के वर्ष के विषय में काफी विवाद और दावों के बीच एक हजार से अधिक वर्षों का अन्तर है। आधुनिक इतिहासकार इनका जन्म 788 ईस्वी में मानते हैं जबकि जिन चारों मठों की इन्होंने स्थापना की उनके अभिलेख इनका जन्म कलि 2593 यानि ईसा पूर्व 509 (509 BCE) मानते हैं। इनके पिता का नाम शिवगुरु भट्ट और माता का नाम सुभद्रा था। बहुत दिन तक सपत्नीक भगवान शिव की आराधना करने के अनंतर शिवगुरु ने पुत्र-रत्न पाया था, अत: उसका नाम शंकर रखा।


जब ये तीन ही वर्ष के थे तब इनके पिता का देहांत हो गया। ये विलक्षण और अद्वितीय मेधावी तथा प्रतिभाशाली थे। छह वर्ष की अवस्था में ही ये प्रकांड पंडित हो गए थे और आठ वर्ष की अवस्था में इन्होंने संन्यास ग्रहण किया था। मात्र बत्तीस वर्ष की उम्र में वे निर्वाण प्राप्त कर ब्रह्मलोक चले गए (लगभग इसी उम्र में स्वामी विवेकानंद भी निर्वाण प्राप्त किए थे) इस छोटी-सी उम्र में ही उन्होंने भारतभर का भ्रमण कर हिंदू समाज को एक सूत्र में पिरोने के लिए चार मठों की, चारों दिशाओं में, स्थापना कर सांस्कृतिक भारत की सीमाएं सुरक्षित की और दर्जनों मौलिक ग्रंथ लिखे एवं प्रमुख धर्म ग्रंथों पर टीका लिखी।

भगवान आदि शंकराचार्य ने उस युग में केरल से कश्मीर की यात्रा की और आधुनिक श्रीनगर में स्थित शंकराचार्य पर्वत पर शिव लिंग की स्थापना की। आज तक वहां पूजा होती है। मुझे इस मंदिर में जाने का और पूजा करने का कई बार सौभाग्य प्राप्त हुआ। आदि शंकराचार्य ने कश्मीर की नीलम घाटी में स्थित मां शारदा के (अब यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में है। यह उड़ी से लगभग 60 किमी आगे है) विश्व प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर में पूजा अर्चना की और धर्म चर्चा की। कश्मीर उस समय शिक्षा का महान केन्द्र था और इसीलिए इसे "शारददेश" भी कहा जाता था/है। जी वी अय्यर के निर्माण-निर्देशन में आदि शंकराचार्य पर 1983 में एक फिल्म भी बनी है- "आदि शंकराचार्य"

 

यह संस्कृत में बनने वाली पहली फिल्म है। सर्वदमन बनर्जी ने आदि शंकराचार्य का चरित्र बहुत ही सुन्दर चित्रित किया है। भारतीय संस्कृति, फिल्म जगत और नाट्य-रंग के शलाका पुरुष श्री बी वी कारंत और दक्षिण भारतीय शास्त्रीय संगीत के "संगीत कलानिधि" बालमुरलीकृष्ण (पद्मविभूषण) ने इसका संगीत दिया है। फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। यह एक महान फिल्म हैअवश्य देखें। मैंने कई बार देखा है। लिंक दे रहा हूं। हिंदी में भी "डबिंग" उपलब्ध है। https://youtu.be/-b6InzqxrrQ चार मठ के शंकराचार्य ही हिंदुओं के केंद्रीय आचार्य माने जाते हैं, इन्हीं के अधीन अन्य कई मठ हैं। चार प्रमुख मठ निम्न हैं:- 1. वेदान्त ज्ञानमठ, श्रृंगेरी (कर्नाटक, दक्षिण भारत) 2. गोवर्धन मठ, जगन्नाथपुरी (ओडिशा, पूर्वी भारत) 3. शारदा मठ, द्वारका (गुजरात, पश्चिम भारत) 4. ज्योतिर्पीठ, बद्रिकाश्रम (उत्तराखंड, उत्तर भारत) आदि शंकराचार्य ने लगता है भविष्य में आने वाले खतरों को देख लिया था इसलिए हिंदू धर्म को व्यवस्थित करने का भरपूर प्रयास किया।

उन्होंने हिंदुओं की सभी जातियों को इकट्ठा करकेदसनामी संप्रदायबनाया और साधु समाज की अनादिकाल से चली रही धारा को पुनर्जीवित किया। आपने आततायियों और धरमशत्रुओं से धर्म रक्षार्थ "नागा" साधुओं का संगठन किया। इसी लिए नागाओं को "शंकराचार्य की सेना" भी कहा जाता है। उन्होंने प्रमुख भारतीय दार्शनिक ग्रन्थों पर भाष्य (टीका) लिखे। इनमें प्रमुख उपनिषदों और श्रीमद्भगवद्गीता पर उनके भाष्य बहुत महत्वपूर्ण है। "भज गोविन्दम्" उनका बहुत ही प्रसिद्ध, दार्शनिक और सुमधुर गेय भजन है। भज गोविन्दं भज गोविन्दं, गोविन्दं भज मूढ़मते। संप्राप्ते सन्निहिते काले, हि हि रक्षति डुकृञ् करणे॥१॥ मूढ़ जहीहि धनागमतृष्णाम्, कुरु सद्बुद्धिमं मनसि वितृष्णाम्। यल्लभसे निजकर्मोपात्तम्, वित्तं तेन विनोदय चित्तं॥२॥ ….. भारत रत्न डाक्टर एम एस सुब्बुलक्ष्मी ने इसे बहुत सुमधुर गाया है